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क्योंकि इनसे लोगों को अपने जीवन में ऊध्र्वगामी सामाजिक गत्यात्मकता पाने के लिए आजकल लड़कियों को भी चाहे वे कितनी सुन्दर व गुणवान क्यों न हो, उच्च शिक्षा पाने का भरसक प्रयास करना पड़ता है । तभी वे यह आशा कर सकती हैं कि वे अपने पैतृक परिवार की सामाजिक वर्ग स्थिति में ऊंची वर्ग स्थिति के परिवारों से ब्याही जा सकेगी । उच्च और उत्तम शिक्षा के बिना जिससे अच्छी आर्थिक और सामाजिक स्थिति प्राप्त हो सके, आज के जीवन में कोई भी सुख समृद्धि की आशा नहीं कर सकता है । इसीलिए आजकल शिक्षा अत्यन्त महत्वपूर्ण बन गई है । सभी वर्गों व समुदायों के लोग शिक्षा को सामाजिक गत्यात्मकता का अत्यन्त महत्वपूर्ण संयंत्र या साधन स्वीकारने लगे हैं । 5.4 मूल शब्द और संप्रत्यय 1 सामाजिक गत्यात्मकता – व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह का एक सामाजिक स्थिति से
दूसरी सामाजिक स्थिति की ओर गमन या गति को सामाजिक गत्यात्मकता कहा जाता
2 स्पर्धात्मक गत्यात्मकता – जब किसी व्यक्ति या समूह को अपने प्रयासों के द्वारा
स्पर्धा में भाग लेते हुए कोई उच्च अवस्था, आर्थिक सामाजिक पदस्थिति प्राप्त होती है। तो उसे स्पर्धात्मक गत्यात्मकता कहा जाता है ।
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3 प्रदत्त गत्यात्मकता – एक व्यक्ति को बिना किसी स्पर्धा का सामना किये बिना अपना
कठोर प्रयास किये जब किसी प्रभावशाली व्यक्ति की इच्छा या कृपा से उच्च पदस्थिति प्राप्त हो जाती है तो वह प्रदत्त गत्यात्मकता कहलाती है । क्षैतिज गत्यात्मकता . भौगोलिक रूप से स्थान परिवर्तन को, अथवा एक सी ही आर्थिक सामाजिक स्थिति में पलायन को क्षैतिज गत्यात्मकता कहा जाता है । लम्बवत गत्यात्मकता – अपनी वर्तमान आर्थिक सामाजिक पदस्थिति को ऊंची या नीची पदस्थिति में जाने पर लम्बवत गत्यात्मकता होती है । ऊंची पद स्थिति में ले जाने वाली गत्यात्मकता को ऊध्र्वगामी कहना चाहिए ।
छात्रों की आकांक्षाओं के सार को अनेक अभिभावकों के व्यवसाय का बड़ी सीमा तक तथा उपलब्धि हेतु संरचना पर, प्रभाव पड़ता है । उदाहरणार्थ, निम्न जाति ग्रामीण पृष्ठ भूमि के साथ छात्रों की उच्चवर्गीय तथा शहरी छात्रों की तुलना इस तथ्य को प्रमाणित करती है । महत्वाकांक्षी व्यवसाय को अपनाने हेतु उच्चतर शिक्षा प्राप्ति के लिये सम्पति भी एक विचारणीय बात होती है । अशिक्षित व्यक्ति जिसके पास विपुल धन-सुविधा है, वे अपने बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाते देखे गए हैं ।
जब निम्न वर्ग से सम्बन्धित छात्र उच्चतर शिक्षा पा लेते हैं तो वे अधिक आय दिलाने वाली नौकरियों के लिये न केवल पात्र बन जाते हैं परन्तु उसके सम्मान को भी बढ़ाते हैं। ऐसी उच्च जाति में विवाह संबंध स्थापित करने में समर्थ होते हैं जो कि धनवान बन गई है । अथवा उच्चवर्गीय दर्जा प्राप्त कर लिया है । पश्चिमी शिक्षा का प्राप्त करना भी इस दिशा में एक कसौटी बन गई है । उच्चतर शिक्षा के परिणामस्वरूप कुछ हद तक जाति के सदस्यों को निम्न जाति में पैदा होने के धबे को हटाने में सहायता मिलती है । वस्तुतः शिक्षा एक सम्मान तथा उच्च सामाजिक दर्जे का प्रतीत बन चुकी है । इसने महिलाओं के सामाजिक दर्जे को बहुत बदल दिया है । जिन परिवारों ने उच्च आर्थिक दर्जा तो प्राप्त कर लिया है परन्तु अपने बच्चों को समकक्ष उच्च शिक्षा नहीं दिलाई उनका सार्वजनिक सम्मान घट जाता है ।
जो छात्र आत्मनिर्भर होते हैं। उनकी सामाजिक गतिशीलता उनसे भिन्न होती है जो अभिभावकों के आश्रय पर होते हैं । प्रथम कोटि के छात्र अंतर-पीढ़ी गतिशीलता वाली स्थिति के प्रति अधिक चिंतित रहते हैं । वर्तमान में पत्राचार पाठ्यक्रमों सांय । प्रातः कालीन वर्गों की सुविधा के परिणाम स्वरूप छात्रों की संख्या बहुत बड़ी बन गयी है । क्योंकि कार्यरत व्यक्तियों
विदयालयी उपाधि डिप्लोमा वाले व्यावसायिक पाठ्यक्रम अब उपलब्ध हैं जिनका लाभ उठाकर वे अनेक प्रतिस्पर्धाओं तथा विभिन्न पाठ्यक्रमों में सफलता प्राप्त करते हैं । यह स्वाभाविक है क्योंकि नियमित महाविद्यालय उनकी इस प्रकार की विशेष आवश्यकता की पूर्ति नही कर पाते हैं | परिस्थितिवश व्यक्तियों को आरंभिक आयु में ही औपचारिक शिक्षा प्राप्त करना त्याग कर, नौकरी ढूंढना पड़ जाता है । परन्तु उसे प्राप्त कर वे अपनी शैक्षिक योग्यता में वृद्धि करना चाहते हैं ताकि अधिक आय वाले व्यवसाय के लिए अधिक, पात्र बन सकें । इस उद्देश्य से जबकि नियमित शिक्षा प्राप्ति के अवसरों का अभाव है उन्हें इन ट्यूटोरियल कॉलेजों की शरण में जाना पड़ता है । औपचारिक प्रौढ़ शिक्षा के ये सभी साधन सामाजिक गतिशीलता के एक महत्वपूर्ण साधन का कार्य करते हैं । यहां पर गतिशीलता के नमूने की विशेषता, स्वैच्छिक तथा सार्थक अभिप्ररेणा होती है जो कि अभिभावकों पर आश्रित छात्रों के बाबत नहीं
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दिखाई देती है । इसके अतिरिक्त, व्यक्ति अपने धन्धे में संलग्न रहते हुए भी उच्चतर शिक्षा प्राप्त कर सामाजिक वर्ग के उच्च सोपान को प्राप्त करने की योग्यता रखते हैं ।
कुछ लोग शिक्षा-क्रियाकलाप को जीवन की इतिश्री समझते हैं । जो व्यक्ति ठीक आयु अवस्था में शिक्षा प्राप्ति के अवसर से वंचित रह जाते हैं उन्हें औपचारिकता, प्रौढ़ शिक्षा, ऐसे अवसरों के लिये सहायता करती है उदाहरण के लिए पत्राचार पाठ्यक्रम, गृहणियों, विधवाओं, निर्वासितों को अपना दर्जा सुधारने के लिए विशेष सुविधाएं प्रदान करता है । विश्व विद्यालयी शिक्षा को डिप्लोमा स्तरीय तकनीकी शिक्षा से आमतौर से श्रेष्ठ माना गया है । इस कारण से विश्वविद्यालयी शिक्षा प्राप्ति हेतु, अधिक संख्यक छात्रों का दृष्टिकोण बन बैठा है, जिसके फलस्वरूप तकनीकी कौशलों में पिछड़ापन आ रहा है । हो सकता है कि रोजगार सुविधाओं में विविधता आने से वे प्रशिक्षण सुविधाओं के कारण मूल्यों की योजना में परिवर्तन आत्मनिर्भर छात्रों के लिये औपचारिक शिक्षा, अवश्यमेव सार्थक प्रतीत होती है । क्योंकि वह उन्हें अपने रोजगार में पदोन्नति प्राप्त करने अथवा अधिक अच्छे रोजगार प्राप्त करने योग्य बनाती है । ट्यूटोरियल संस्थाएं, शैक्षिक कम तथा व्यापारिक लाभ की अधिक की दृष्टि से कार्य करती है । उन पर सरकार तथा विश्वविद्यालय को अंकुश रखना चाहिए व सामाजिक गतिशीलता के लिये आर्थिक पर्याप्त अवसर उपलब्ध कराए जाने चाहिए ।
| अध्यापक की सामाजिक गतिशीलता जहां तक प्रकृति का सत्व का प्रश्न है, छात्रों की सामाजिक गतिशीलता के संदर्भ में, भिन्न हैं, विभिन्न सामाजिक पृष्ठभूमि के लोग शिक्षण के अनेक स्तरों पर प्रवेश करते हुए देखे जाते हैं । रूढ़िवादी सामाजिक ढ़ाचे परिस्थिति के विपरीत आज समाज तथा छात्रों के दिल में अध्यापक के प्रति वही सम्मान नहीं है
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